काम वासना की आग- 28

आप ने antarvasna sex stories के पिछले भाग में पढ़ा वो चाय पीते पीते बात करने लगा और फिर एक ऐसा सवाल उसने मुझसे पूछा जिसके बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं था उसने मुझसे पूछा कि मैं बचपन के दिनों में उसके बारे में क्या सोचती थी अब आप antarvasna sex stories में आगे पढ़े

Antarvasna Sex Stories 28

मैंने सीधा सा उत्तर दिया कि हम एक ही गांव के थे और केवल दोस्त ही समझते थे फिर उसने मुझसे कहा कि वो मेरे बारे में कुछ और ही समझता था मैं बात समझ गयी पर अनजान बन उस बात को टालना चाही

पर चाय खत्म होते होते उसने आखिर अपने दिल में छुपी बात कह दी कि वो मुझसे प्यार करता था गांव में ये सब नहीं चलता था और दूसरी जाति में शादी भी नहीं होती थी ये सब बात हमें बहुत कम उम्र में ही सिखा दिया गया था

मैं उससे कन्नी काटती हुयी बाहर निकली और उसे कहा काफी देर से तुम यहां हो किसी ने देखा तो गलत समझेगा मैंने उसे जाते जाते साफ साफ कह दिया कि हम दोनों के अपने अपने परिवार हैं और ऐसी पुरानी बातें करने से कोई मतलब नहीं बनता

वो रूखे मन से चला तो गया पर मुझे कुछ अलग सा महसूस हुआ कि आखिर उसने बेमतलब पुरानी बात क्यों की जबकि हम जब साथ थे उस वक्त ना करके आज इतने सालों बाद की

मैं काफी देर तक सुरेश के सोच में डूबी रही फिर 8 बज चुके थे उधर पति ने फोन करके बोल दिया था कि वो दो दिन के बाद आएंगे फिर मुझे कुछ याद आया और मैंने सुरेश को फोन लगाया उससे पूछा कि अगर वो मुझसे प्यार करता था तो सरस्वती के साथ उसका क्या था?

तब उसने मुझे बताया कि वो सरस्वती से मुझे पटाने के लिये ही बात करता था मैं नहीं जानती कि वो सच कह रहा था या झूठ पर मुझे उस वक़्त ऐसा लगता था कि दोनों का चक्कर है

अब मैं आपको कुछ देर अपने बचपन में ले चलती हूं क्योंकि ये कहानी इसी बचपन के दोस्त की है हम एक गांव के 4 दोस्त थे जिनमें से सुरेश ही एक लड़का था बाकी हम 3 सहेलियां थीं मैं सरस्वती और विमला

हमारा स्कूल 4 किलोमीटर हमारे गांव से दूर था और केवल हम चार ही अपने गांव से पढ़ने जाते थे हम 3 सहेलियों के पिता ठेकेदारी में एक ही जगह काम करते थे और सुरेश के पिता सरकारी नौकरी में थे

गांव में लड़कियों की पढ़ाई पर ज्यादा ज़ोर नहीं दिया जाता था इसलिये हम शुरूआती पढ़ाई के बाद पास के कॉलेज में पढ़ने चले गये विमला और मैं और सरस्वती इंटर के बाद गांव में ही रहीं और फिर सबसे पहले उसी की शादी हो गयी

सुरेश दसवीं के बाद ही बाहर चला गया था पर जब कभी गांव आता तो हम सबसे जरूर मिलता उसका रुझान ज्यादातर सरस्वती पर ही रहता इस वजह से विमला मुझसे कहा करती कि इन दोनों का चक्कर है

पर उस समय ये प्यार मोहब्बत करना तो दूर की बात लोग आपस में बातें भी नहीं करते थे खासकर गांव का माहौल तो बहुत अलग होता था जात पात का समाज में भेदभाव बहुत था

हमारे गांव में 3 अलग अलग जाति के लोग थे जिनमें से हम चारों थे मेरी और विमला की जाति एक थी बाकी सरस्वती और सुरेश अलग अलग जाति के थे पर चाहे जितनी भी बंदिश हों लोग जिनको मौका मिलता है अपने तरह से छुप छिपा कर मौज मस्ती कर ही लेते हैं

वैसे दसवीं तक तो हमें इन सब चीजों के बारे में नहीं पता था ये सब तो कॉलेज जाने के बाद पता चला कॉलेज में बहुत से लड़के हमें भी परेशान करते थे मगर हम सबसे बच के रहते थे क्योंकि वो ऐसा जमाना था जहां कौमार्य बहुत मायने रखता था

शादी से पहले संभोग एक पाप समझा जाता था और हम लड़कियों में ये भावना पैदा की गयी थी कि मर्द पहचान लेते थे कि हमारा कौमार्य भंग हुआ या नहीं

इसी वजह से अगर कोई लड़की किसी से प्यार करती भी थी तो संभोग से दूर रहती थी क्योंकि यदि उसकी शादी किसी और से हुयी तो उसके मर्द को पता चल जायेगा अभी का दौर बहुत बदल गया है

मैं करीबन 5 साल से एक वयस्क साइट की सदस्य हूं और ये मैंने जाना कि कौमार्य अब कोई मायने नहीं रखता छोटे शहरों और गांवों में आज भी ये प्रचलन है मगर बड़े शहरों में ये अब छोटी बात है और आजकल की फिल्मों में भी यही सब दिखाया जाता है

तो ये सारी बातें थीं पर मेरे दिमाग में ये चल रहा था कि आखिर इतने सालों के बाद सुरेश ने मुझसे आज ये बात क्यों कही उस दिन मैंने उसे साफ साफ कह दिया था कि इस बारे में दोबारा ना चर्चा करे और मैंने फोन रख दिया

पर मेरी बेचैनी कम नहीं हो रही थी मैं सोच में डूब गयी थी मैं अपनी पुरानी जिंदगी में खो गयी और रात भर यही सब सोच सोच कर सोई ही नहीं

एक एक कड़ियां खुद जोड़ने लगी क्यों मैं सरस्वती और सुरेश पर ज्यादा ध्यान देती थी क्यों विमला से उनके बारे में सुनना चाहती थी क्यों एक समय के बाद मुझे सरस्वती से जलन सी होने लगी थी

अगली सुबह जल्दी ही मेरी नींद खुल गयी जब कि मैं रात में देरी से सोई थी फिर भी खैर भला हो नये जमाने का कि फोन की वजह से मेरे पास विमला का नंबर था और मैंने उसे फोन लगाया

उससे बात घुमा फिरा कर मैंने सरस्वती का नंबर लिया फिर इतने सालों के बात उससे बात हुयी मैंने उससे हाल चाल पूछे मिलने को हम शादी के बाद भी बहुत बार गांव में मिले थे मगर कभी नंबर नहीं लिया था

दिन भर बात करने के बाद जब मुझे लगा कि अब हम बचपन की तरह से मिल गये हैं तब मैंने उसे सुरेश के बारे में बताया सुरेश का नाम सुनते ही वो ऐसे चहक उठी जैसे उसका पुराना प्यार हो

तब मुझे लगा कि सुरेश झूठ बोल रहा था वो सरस्वती से ही प्यार करता था पर कुछ देर और बात करने के बाद उसने मुझे बताया कि सुरेश मुझसे प्यार करता था और मुझे मनाने के लिये सरस्वती से हमेशा कहता रहता था

अब मेरी दुविधा तो दूर हो गयी पर इस उम्र में ये कह कर आखिर सुरेश क्या करना चाहता था वैसे मेरी जीवनशैली अब बहुत अलग थी मेरी दोहरी जिंदगी थी एक सीधी साधी घरेलू महिला की तो दूसरी कामक्रीड़ा की अभिलाषी बरसों की प्यासी महिला की

इस अवस्था में प्यार का इजहार करना तो केवल एक ही ओर इशारा कर रहा था और वो इशारा शरीर की भूख की तरफ का था

पर एक बार ये भी ख्याल आया कि शायद बचपन की अभिलाषा इस उम्र में इसलिये निकल आयी क्योंकि उस वक्त हिम्मत नहीं हुयी होगी और अब कुछ हो नहीं सकता इसलिये बात कह कर अपना मन हल्का करना चाहता हो

मैं फिर से दुविधा में फंस गयी जहां मुझे 90% शरीर की भूख लग रही थी वहीं 10% मन की बात पर जा रहा था अगर 90% वाली बात सही हो गयी तो फिर कोई परेशानी नहीं थी

मगर इस 90% के चक्कर में 10% वाली बात सच हुयी तो फिर मेरी बुरी छवि उसके सामने आ जायेगी बस अब सब कुछ साफ हो गया था इसलिये कोई दुविधा नहीं थी सुरेश के मन में क्या है ये मैंने उसी पर छोड़ दिया

दोपहर सुरेश ने फोन किया और मुझसे माफी मांगी मैंने भी पुरानी बात कह कर और अपना दोस्त समझ माफ कर दिया हम फिर से पहले जैसे हो गये

पति घर पर नहीं थे सो अकेला लग रहा था मैंने उससे कहा- शाम चाय पीने आ जाना।मुझे उसके लिये अब कुछ प्यार होने लगा था मैं शादीशुदा थी और कई पुरुषों के साथ सेक्स भी कर चुकी थी

ये सब सोच कर मुझे लगा कि सुरेश बचपन का साथी है और वर्तमान दौर में वो पत्नी के ना रहने से सेक्स का भूखा भी है मुझे उससे संभोग की बात भी मन में आयी लेकिन मैंने इस विचार को सुरेश की पहल पर छोड़ने का निश्चय किया और उसके आने का इंतजार करने लगी

शाम वो करीब 7 बजे आया हम चाय पीते हुये बात करने लगे और 8 बज गये अब रात हो चुकी थी तो मैंने उससे खाने के लिये भी पूछ लिया और रात 9 बजे तक मैंने खाना बना लिया

खाते पीते और बातें करते 10 बज गये और फिर पता नहीं वो बात घुमा फिरा कर अपनी बीवी और अकेलेपन की बात करने लगा मुझे उसकी बातों पर थोड़ा संदेह होने लगा और फिर मैं बहाने बनाने लगी ताकि वो मेरे घर से चला जाये

पर वो हिलने का नाम नहीं ले रहा था और मेरा डर और उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी किसी तरह वो जाने को राजी हुआ तो मेरी जान में जान आयी वो मुझे जाने को बोल कर बाहर की ओर बढ़ने लगा

तब मैं भी उसके पीछे जाने लगी कि उसके जाते ही मैं दरवाजा बंद कर दूं अभी वो दरवाजे के पास ही पहुंचा था कि अचानक से वो मेरी तरफ पलट गया मैं एकदम से चौंक गयी पर मैं जब तक कुछ समझ पाती कि उसने झट से मुझे पकड़ कर अपनी बांहों में भर लिया

मैं उसके विरोध में चिल्लाती कि उसने अपने होंठों से मेरे मुंह को बंद कर दिया मैं एक पल के लिये भौचक्की रह गयी पर अगले ही पल उससे दूर होने के लिये संघर्ष करने लगी उधर उसने अपनी पूरी ताकत से एक हाथ से मुझे पकड़ रखा था दूसरे हाथ से मेरे बालों को

2 मिनट तक वो मेरे होंठों के रस को जबरदस्ती चूसता रहा और मैं संघर्ष करती रही उसकी चूमाचाटी से मुझे अंदर से आग लगने लगी थी तब भी इस वक्त मुझे उससे छूटना ज्यादा जरूरी लगने लगा था

आखिरकार मैं ज़ोर लगाकर उससे अलग हुयी और पलट कर भागना चाहा मगर उसके चंगुल में मेरी साड़ी और ब्लाउज थे साड़ी का पल्लू मेरे मम्मों से हट गया और उसकी गांठ मेरे कमर से खुल गयी वहीं दूसरी तरफ से मेरा ब्लाउज फट कर एक मम्में का हिस्सा उसी के हाथ में रह गया

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ मुझे जिधर जगह मिली मैं भागने लगी फिर मैं भीतर कमरे में चली गयी और दरवाजा बंद कर लिया पर मेरी किस्मत इतनी खराब थी या पता नहीं मुझे किस मोड़ पर ले जाना चाहती थी कि क्या बोलूं

उस दरवाजे का कुंडा ही टूटा था मैं जैसे तैसे भागती हुयी एक कोने में सिमट गयी और साड़ी उठा कर उससे अपना शरीर ढकने का प्रयास करने लगी कुछ ही पलों में सुरेश मेरे पीछे पीछे कमरे में हांफता हुआ आया और गरम नजरों से मुझे घूरने लगा

उसकी आँखों में वासना की ललक थी मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी बल्कि शर्म से अपनी नजरें छुपाने की कोशिश कर रही थी धीरे धीरे वो मेरे नजदीक आने लगा फिर मेरे मुंह से उससे दूर होने वाली बातें निकलनी शुरू हो गयी

मैं उससे बोली- ये तुम क्या कर रहे हो सुरेश मैं शादीशुदा हूं और तुम मेरे दोस्त हो ऐसा तुम सोच भी कैसे सकते हो पर वो चुपचाप मेरी ओर बढ़ता चला आया और फिर मेरे बदन से मेरी साड़ी अलग करने में लग गया

मैं भी उसकी चुप्पी से समझ गयी कि अब मेरे लिये बच पाना नामुमकिन है मैंने कभी ये सोचा भी नहीं था मैं उसके साथ संभोग की बात सोचने तो लगी थी मगर ये सब इस तरह से होगा ये मैंने नहीं सोचा था

मैं सेक्स करने को तैयार भी थी फिर भी मुझसे जब तक हो रहा था मैं विरोध करती रही वो मेरी साड़ी मुझसे छीनने में सफल हो गया और मेरी बांहों को जकड़ कर मेरे गालों गले और मम्मों के इर्द-गिर्द चूमने लगा

मैं निरंतर उससे खुद से दूर करने का प्रयास करती रही पर वो पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था मेरा ब्लाउज तो एक तरफ से फट ही गया था सो उसे उतारने में ज्यादा देर नहीं लगी एक कोने में वो मुझे खड़े खड़े पागलों की तरह चूमे जा रहा था

वो मुझे चूमते हुये कभी मेरे मम्मों को दबाता कभी चूतड़ों को कभी जांघों को सहलाता और मैं बस उसके हाथ झटकती रहती मैं अब केवल ब्रा और पेटीकोट में थी और मेरे साथ ज़ोर जबरदस्ती में उसने सट से खींच मेरी पेटीकोट का नाड़ा भी खोल दिया

नाड़ा खुलते ही मेरा पेटीकोट नीचे गिर गया मैं घर पर पैंटी नहीं पहनती हूं और मेरे दोनों हाथ मेरी चूत को छुपाने में लग गये इससे उसे एक सुनहरा सा अवसर मिल गया और वो दोनों हाथों से मेरे एक एक मम्में को दबाते हुये मुझे चूमने लगा

मैं दोनों हाथों से अपनी चूत को ढक कर उसके चूमाचाटी को सहती रही फिर उसने हाथ पीछे ले जाकर मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया मैं अब कुछ नहीं कर सकती थी उसने जबरदस्ती खींच कर मेरी ब्रा भी मुझसे अलग कर दी थी

मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी थी मेरे पास कोई रास्ता नहीं था उसने मुझे छोड़ तो दिया पर खुद के कपड़े उतारने लगा मैं उसके आगे एक हाथ से दोनों मम्मों को और एक हाथ से चूत को छुपाने के प्रयास करती रही

अब तो मैंने किसी तरह की विनती भी करनी बंद कर दी थी कुछ ही पलों में वो अपने कपड़े उतार खुद भी नंगा हो गया उसका लंड किसी गुस्सैल नाग सा तन कर फनफना रहा था काला लंड बालों से घिरा करीबन 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा था

उसके लंड के सुपाड़े के ऊपर की चमड़ी हल्की सी खुली थी जिसमें उसका मूत्र द्वार दिख रहा था और चिपचिपी पानी की बूंद सी निकल रही थी उसके इस आकार के लंड को देख कर मेरी कामना भी भड़कने लगी थी

अब वो मेरी ओर बढ़ा और मेरे दोनों हाथों को पकड़ मेरे मम्मों और चूत से हटा कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया वो मुझे फिर से चूमने लगा उसका सख्त कड़क लंड मुझे मेरी नाभि के इर्द गिर्द चुभता सा महसूस होने लगा

अब मैंने सोच लिया कि इसे जो भी करना है कर लेने देती हूं क्योंकि विरोध का कोई लाभ नहीं था वैसे भी मुझे कोई खासा फर्क तो पड़ने वाला नहीं था क्योंकि मैं खुद काम की प्यासी रहा करती हूं पर ये मेरे बचपन का मित्र था इस बात से अटपटा सा लग रहा था

मैंने तो अब तक कईयों बार अनजान व्यक्तियों के साथ संभोग किया था सो अब मैंने सोचा कि सुरेश का साथ देना ही उचित होगा पर मैं अपनी तरफ से कोई हरकत नहीं कर रही थी बस जैसा वो कर रहा था करने दे रही थी

उसने जी भर कर मेरे मम्मों को चूसा दूध पिया जहां जहां मर्ज़ी हुयी मुझे चूमा और धीरे धीरे मुझे जमीन पर गिराते हुये लिटा दिया मैं सामान्य नजरों से उसे देखे जा रही थी और वो भी बीच बीच में मुझे देखता मगर उसकी आंखों में सिवाए वासना के कुछ नहीं दिख रहा था

बाकी कहानी hindi sex story के अगले भाग में

Antarvasna Sex Stories :- काम वासना की आग- 29

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