आप ने antarvasna sex stories के पिछले भाग में पढ़ा मैं उत्तेजना में छटपटाने सी होने लगी और कभी निर्मला के मम्में तो कभी उसके चूतड़ों को दबाने लगी मुझे ऐसा करते देख निर्मला मुझसे लिपट गयी और मेरे होंठों को चूमने लगी अब आप antarvasna sex stories में आगे पढ़े
Antarvasna Sex Stories 26
मैं पहली बार समलैंगिक चुम्बन कर रही थी हालांकि बहुत सी स्त्रियों ने पहले भी मेरे मम्में और चूत का स्वाद लिया था पर आज ये पहली बार था जिसमें मैं चुम्बन कर रही थी
वो मेरे मम्मों को मसलती हुयी किसी मर्द की तरह मुझे चूम रही थी और मैं भी इतनी उत्तेजित थी कि ये भूल बैठी कि वो मर्द नहीं औरत है धीरे धीरे वो मेरे मम्मों की ओर बढ़ने लगी और जैसे ही उसने मेरा एक मम्मां चूसा और मुझे अचंभित होकर एकटक देखने के बाद दूसरा मम्मां चूसा
फिर वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी मैं अभी समझ पाती कि तभी उसने अपनी जुबान बाहर करके मुझे दिखाया कि उसके मुंह में मेरा दूध है
मैं तब समझ गयी कि वो अचंभित इसलिये हुयी होगी क्योंकि इस उम्र में शायद ही किसी महिला के मम्मों से दूध आता हो
उसे खुशी भी हुयी और उसने फिर से मेरे मम्मों से बारी बारी चूस कर मेरा दूध पीना शुरू कर दिया दूसरी तरफ राजशेखर मेरी चूत पर अपने जुबान से खिलवाड़ किए जा रहा था और मैं अपने बस से बाहर होती जा रही थी
वो मेरी चूत में एक उंगली डाल लगातार जीभ से चाटता था जिससे मेरी चूत से पानी रिसते हुये उसके मुंह और बिस्तर पर गिरने लगा
अचानक पूरे बदन में मुझे झनझनाहट हुयी मैं खुद को रोक ना पाई और थरथराते हुये झड़ गयी झड़ने के क्रम में मैंने पूरी ताकत से निर्मला को पकड़ लिया था
जैसे ही मेरी पकड़ ढीली हुयी निर्मला ने कहा- देखो तो तुम तो अभी से ही झड़ने लगी लंड से चुदने पर क्या होगा ये कह कर उसने मुझे छोड़ दिया और राजशेखर के पास गयी
वो बोली- तुम्हारी समधन चुदने को तैयार है अब तुम भी तैयार हो जाओ
उसने राजशेखर को पीठ के बल लेटने को कहा और खुद उसके लंड को पकड़ चूसने लगी तब राजशेखर ने मुझसे कहा- जब तक निर्मला मुझे तैयार करती है मुझे अपना दूध पिलाओ
उसके कहने के अनुसार मैं उसके बगल लेट गयी और अपना मम्मां उसके मुंह में दे दिया सच कहूं तो उस वक्त बड़ा आनंद आया जब उसने मेरा मम्मां चूसना शुरू किया उसके मुंह में जैसे जादू था
जैसा उसने मेरी चूत को सुख दिया था अब मेरे मम्मों को दे रहा था वो जहां मेरे मम्मों को चूस रहा था वहीं दोनों हाथों से मेरी मोटी मोटी जांघों और चूतड़ों को सहला भी रहा था
काफी देर मेरे बदन से खेलने के बाद उसने कहा- निर्मला आओ तुम भी तैयार हो जाओ तुम दोनों को मुझे बारी बारी से चोदना है राजशेखर चाहता था कि मैं निर्मला की चूत चाटूं पर मुझसे ये होने वाला नहीं था
तब उसने मुझे अपना लंड चूसने को कहा और निर्मला को अपने मुंह के ऊपर बिठा कर खुद उसकी चूत चाटने लगा मैंने जैसे ही राजशेखर का लंड हाथ में पकड़ा मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने कोई मोटा गरम सरिया पकड़ लिया हो
मैंने उसे ऊपर नीचे हिलाया तो उसका सुपाड़ा खुल गया और ऐसा दिखने लगा जैसे अंगार उगलने को है उसका सुपाड़ा एकदम लाल और कठोर हो चुका था
मैं खुद भी बहुत उत्तेजित थी मैंने ज्यादा देर नहीं लगाई और उसके सुपाड़े पर जीभ फिराते हुये थूक से गीला कर दिया फिर मुंह में भर उसे चूसने लगी एक तरफ निर्मला तैयार हो रही थी दूसरी तरफ मैं राजशेखर को तैयार कर रही थी
वैसे ये सब केवल उस नाटक के लिये था तैयार तो हम तीनों पहले से ही थे क्योंकि इतने लोग आपके सामने संभोग कर रहे हों और आप को कुछ हुआ ना हो ऐसा तो केवल नपुंसकों के साथ हो सकता है
थोड़ी ही देर में राजशेखर ने निर्मला को अपने ऊपर से हटाया और मुझे बिस्तर पर पीठ के बल लिटा संभोग का आसन ले लिया
तभी निर्मला ने कहा- अब तुम्हारी सालों की प्यास बुझने वाली है सारिका राजशेखर प्यार से चोदना इसे
राजशेखर ने कहा- बिल्कुल मेरी जान इसकी प्यारी गीली चूत खराब थोड़े करूंगा
ये कहने ने बाद उसने मेरी जांघें फैलाई और मेरे ऊपर झुक गया उसका लंड मेरी चूत को छूने लगा था तभी निर्मला ने राजशेखर का लंड पकड़ कर उसे मेरी चूत में थोड़ा सा घुसा दिया
फिर वो राजशेखर के चूतड़ों में थपकी मारते हुये बोली चलो अब चुदाई शुरू करो निर्मला के कहते ही राजशेखर ने हल्के हल्के धक्के देना शुरू कर दिया और 4-5 धक्कों में ही उसका लंड मेरी चूत की गहराई में जाने और आने लगा
हर धक्के पर उसका सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी को छूकर वापस आने लगा मेरे आनंद का अब ठिकाना ही नहीं रहा मैं मजे से एक तरफ कराहती जा रही थी तो दूसरी तरफ हर बार जांघें और अधिक खोलती जा रही थी
मेरी चूत से चिपचिपा तरल रिसता हुआ लंड के साथ बाहर आने लगा था अब तो मैंने जांघें इतनी खोल दी थीं कि राजशेखर को मेरी चूत से अपने लंड को घुसाने में जरा भी परेशानी नहीं हो रही थी
कुछ ही पलों में मेरी हालत अब इतनी बुरी हो गयी थी कि मैंने राजशेखर के बांहों को ज़ोर से पकड़ रखा था और बीच बीच में खुद से अपने चूतड़ों को उठा कर उसे चोदने का न्यौता दे रही थी
मैं अब किसी भी पल झड़ सकती थी और करीब 10 मिनट के धक्कों के बाद एक पल आया कि मैं अपने पर काबू ना रख सकी और जोरों से हिचकोले खाते हुये पानी छोड़ने लगी
निर्मला वहीं बार बार मेरे मम्मों को बीच बीच में चूसती जा रही थी मैं झड़कर जैसे ही ढीली हुयी निर्मला ने कहा- देखा मेरे पति की मर्दानगी झड़ गयी ना अभी तो और कितनी बार झड़ोगी पता नहीं
राजशेखर अभी भी हांफता हुआ मुझे धक्के दे रहा था पर जब मैं ढीली पड़ी तो वो भी रुक गया था राजशेखर ने अब निर्मला के होंठों को अपने होंठों से चूमना शुरू किया और मेरी चूत से अपना लंड बाहर खींच लिया
निर्मला ने राजशेखर को चूमते हुये उसे बिस्तर के एक किनारे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गयी राजशेखर उसकी थुलथुली बड़े गांड को दोनों हाथों से मसलने लगा और निर्मला उसे चूमती हुयी एक हाथ से उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत से सीध बना कर बैठ गयी
राजशेखर का लंड सर्र से फिसलता हुआ निर्मला की चूत में समा गया राजशेखर का पूरा लंड निर्मला की चूत में जड़ तक था उसके बाद वो सीधी उठी और रवि के सीने पर दोनों हाथ रख कर धक्के देने लगी
राजशेखर मजे से भर गया और कामुकता के साथ उसके चूतड़ों को तो कभी मम्मों को मसलने लगा कुछ ही पलों में कमरा निर्मला की दर्द भरी और कामुक कराहों से गूंजने लगा निर्मला का जैसे मैंने पहले भी बताया था कि इस उम्र में भी वो बहुत सक्रिय और कामुक महिला थी
अब उसका रूप दिख रहा था जिस प्रकार वो अपनी मदमस्त सुडौल थुलथुल चूतड़ों को हिला रही थी उससे तो अंदाज लगाया जा सकता है कि राजशेखर शायद ही खुद को ज्यादा देर रोक सकता था
वाकयी राजशेखर का चेहरा देखकर भी लग रहा था कि वो बहुत आनंद ले रहा था पर मेरे ख्याल से राजशेखर इतनी जल्दी झड़ने वाला नहीं था और हुआ भी वैसा ही
निर्मला इस अंदाज में धक्के इसलिये लगा रही थी क्योंकि वो स्वयं बहुत उत्तेजित और गर्म हो चुकी थी और थोड़ी ही देर में वो राजशेखर की छाती के दोनों मम्मों के चूचुकों को मुट्ठी में दबोच पूरी ताकत से धक्के मारने और चीखने लगी
राजशेखर को जरूर दर्द हो रहा होगा मगर एक मर्द के लिये सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही होगी कि उसके मर्दाना ताकत के आगे औरत झुक जाये
राजशेखर उस दर्द को दरकिनार करते हुये निर्मला की कमर पकड़ खुद भी नीचे से अपने चूतड़ों को उठा उठा कर उसकी मदद करने लगा नतीजन निर्मला तेज गति से झड़ने लगी
उसकी चूत से चिपचिपा तरल छूटने लगा और राजशेखर के अण्डकोषों और जांघों से होता हुआ बिस्तर पर फैलने लगा झड़ने के बाद निर्मला राजशेखर के ऊपर ही निढाल पड़ गयी पर रवि नीचे से ही हल्के हल्के धक्के लगाता रहा
ढीली होने की वजह से निर्मला का शरीर भारी पड़ गया था जिसकी वजह से राजशेखर पूरा ज़ोर नहीं लगा पा रहा था इसलिये उसने उसे सरका कर किनारे कर दिया
फिर उसने मेरा हाथ पकड़ अपनी ओर खींच लिया उसने मुझे सवारी करने का इशारा किया उसके कहने के अनुसार मैं उसके ऊपर आ गयी और लंड अपनी चूत में प्रवेश करा के अपने चूतड़ आगे पीछे करते हुये धक्के लगाने लगी मैं मस्ती से संभोग को आगे बढ़ाने लगी
मुझे बहुत आनंद आ रहा था मगर मुझसे कहीं ज्यादा आनंद राजशेखर ले रहा था क्योंकि मेहनत तो मुझे करनी पड़ रही थी वो तो केवल मजे ले रहा था
जैसे जैसे मैं ज़ोर लगाती जा रही थी वैसे वैसे मेरे पसीने छूटने लगे थे और मेरी चूत में झनझनाहट होने लगी थी मैं पूरी ताकत लगा कर अपने चूतड़ों को आगे पीछे करते हुये अपनी चूत में उसके लंड का घर्षण करती रही
अंत मेरे पूरे बदन में सैंकड़ों चींटियों के रेंगने की अहसास होने लगा और मैं खुद को ना रोक पाई मैं जोरों से चीखती हुयी झड़ने लगी
मैं- हाय शेखर जी आहहह ओह्ह ईईई मैं झड़ गयी
मैं राजशेखर के कंधों पर अपना सिर रख ढीली पड़ गयी जिसके वजह से वो उत्सुक होने लगा उसने मुझे किसी तरह अपने ऊपर से उतारा और निर्मला को पकड़ कर उसे बिस्तर पर पेट के बल लिटा दिया उसकी टांगें जमीन पर कर दीं
अब उसने खूंखार रूप ले लिया था वो निर्मला के पीछे जाकर अपना लंड उसकी चूत में प्रवेश करा के किसी दुश्मन की भांति उसे धक्के मारने लगा था निर्मला चीखने ऐसे लगी जैसे उसे अत्यधिक पीड़ा हो रही हो
मेरे ख्याल से उसे हो भी रही थी जिस प्रकार राजशेखर उसे धक्के मार रहा था मैं ये देख कर सहम सी गयी निर्मला चादर को दोनों मुट्ठियों से पकड़ कराहते हुये और चीखते हुये राजशेखर के धक्के झेलती रही
राजशेखर अब एकदम अलग अलग तरह से धक्के मार रहा था और मैं यकीन से कह सकती हूं कि उसका एक एक धक्का निर्मला की बच्चेदानी पर ज़ोरदार चोट कर रहा होगा वो निर्मला के कंधों को पीछे से पकड़ कर लंड आधा उसकी चूत से बाहर खींचता और फिर झटके से पूरी ताकत लगा फिर घुसा देता
निर्मला हर धक्के पर इतने ज़ोर से कराह देती मानो वो रो पड़ेगी पता नहीं राजशेखर को क्या हुआ था वो झड़ने का नाम नहीं ले रहा था जबकि हम दोनों औरतें झड़ चुके थे ये हम दोनों औरतों के लिये शर्म की बात थी कि हम दोनों एक मर्द को तृप्त नहीं कर सकी थीं
मैंने सोच लिया था कि मैं राजशेखर को ठंडा कर ही दूंगी राजशेखर को धक्के मारते हुये दस मिनट हो चले थे और अब तो निर्मला की आंखों में आंसू आने को थे मैं आगे बढ़ी और निर्मला के बगल में जा बैठी
मैंने बड़े ही कामुक अंदाज़ में राजशेखर की आंखों में आंखें डाल कर उसके गले को पकड़ा और उसे खींचते हुये अपने होंठ उसके होंठों से लगा दिए मैंने उसके होंठों को जैसे ही चूसना शुरू किया वो भी मेरा साथ देने लगा और मेरे होंठों को चूसते हुये जुबान के साथ खेलने लगा
मेरी इस हरकत से राजशेखर ने झटके मारने बंद कर दिए और उसकी जगह एक गति से तेजी के साथ धक्का मारना शुरू कर दिया मेरी ये तरकीब अब काम आयी क्योंकि मुझे अनुभव है कि मर्दों को ज्यादा उत्तेजित करने के लिये स्त्री को आगे आना पड़ता है
उन धक्कों की वजह से निर्मला की कराहने की आवाज कम हो गयी और वो मादक सिस्कियां लेने लगी उसने ज़ोर से मेरी जांघ पकड़ ली और नाखून गड़ाने लगी मैं समझ गयी कि अब निर्मला झड़ने वाली है और कुछ ही पलों मैं वो हम्मम आह्ह्ह ओह्ह्ह सीस्स्स्स करती हुयी झड़ गयी
उसके ढीले पड़ते ही राजशेखर ने उसकी चूत से लंड बाहर खींचा और मुझे अपनी तरफ खींचते हुये बिस्तर के नीचे खड़ा कर दिया अब मेरे मन में भी इस संभोग को कामुकता और रोमांच भरे अन्दाज में खत्म करने की इच्छा जागृत हो गयी थी
ये ख्याल आते ही पता नहीं मेरे भीतर किसी 25 साल की युवती की भांति कामनाएं जागने लगीं और मैं पूरे तरोताजा हालत में पूरे जोश के साथ उसके साथ चुम्बन और आलंडन में लग गयी
मेरे मम्में अब फिर से सख्त होने लगे और चूत में गुदगुदी के साथ हलचल होने लगी पता नहीं राजशेखर ने शायद निर्मला को इशारा किया या वो खुद अपनी मर्जी से आयी उसने मेरी एक टांग उठा दी और अपने हाथ से सहारा देकर फ़ैला दिया
दूसरे हाथ से राजशेखर का लंड पकड़ कर उसने मेरी चूत में प्रवेश करा दिया मैं एक टांग पर खड़ी थी और निर्मला मेरी एक टांग पकड़े हुयी थी मैं राजशेखर के गले में हाथ डाले झूलने सी लगी
मैं उसके होंठों से होंठ लगाये चुम्बन में मस्त थी और वो मेरी कमर पकड़ कर मुझे धक्के मारने में लगा था ये शायद हमारी संभोग क्रिया का सबसे कामुक पल था जिससे मेरा रोम रोम रोमन्चित हो उठा था उसके लंड का हर धक्का ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सीधा मेरी नाभि में जा रहा हो
मेरी चूत में अब पहले से कहीं ज्यादा पानी आने लगा था और मैं राजशेखर से और अधिक खुल कर चिपकती जा रही थी अब तो मुझे एहसास होने लगा था कि मेरी चूत से पानी रिसते हुये मेरी एक टांग जो जमीन पर थी उसकी जांघों की तरफ बहने लगा
मैंने अपनी आंखें बन्द कर रखी थीं और होंठों को राजशेखर के होंठों से चिपका रखा था राजशेखर और मैं दोनों ही बहुत गर्म थे और शायद इस बात की कोई फ़िक्र नहीं थी कि हम किस अवस्था में संभोग कर रहे हैं
मेरे मन में तो राजशेखर का लंड दिखने लगा कि कैसे मेरी चूत की दीवारों को चीरता हुआ अंदर बाहर हो रहा था मेरे मन में बात चलने लगी थी कि राजशेखर और तेज़ शेखर करते रहो आह शेखू रुकना मत
राजशेखर का जोश इतना बढ़ने लगा था कि वो अब धक्के मारते हुये मेरे चूतड़ों और जांघों को ऐसे सहलाने और दबाने लगा जैसे अब वो मुझे अपनी गोद में उठा लेगा
निर्मला बराबर मेरी जांघों को सहारा दिए हुयी थी वो राजशेखर को धक्के मारने में जरा भी परेशानी नहीं होने दे रही थी एकाएक राजशेखर ने अब मेरी एक टांग जो जमीन पर थी उसे उठाने की प्रयास शुरू कर दिया
निर्मला ने भी उसकी मदद की और राजशेखर ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया अब निर्मला ने मुझे राजशेखर की गोद में ही छोड़ दिया और अलग हो गयी मैं अभी भी राजशेखर की गोद में लटकी हुयी पागलों की तरह उसके होंठों को चूम रही थी और चरम सुख की कामना में थी
बाकी कहानी hindi sex story के अगले भाग में
Antarvasna Sex Stories :- काम वासना की आग- 27