काम वासना की आग- 23

आप ने antarvasna sex stories के पिछले भाग में पढ़ा उसके कहने के अनुसार मैंने केक काट कर पहले रमा को खिलाया आज तक मैंने अपने जन्मदिन या शादी की सालगिरह पर ऐसा कुछ नहीं किया था पर आज इन सब दोस्तों की सहायता से मुझे ये भाग्य भी मिल गया अब आप antarvasna sex stories में आगे पढ़े

Antarvasna Sex Stories 23

मैंने नये साल की खुशी में केक काटा तो मेरी सहेली ने मेरे मम्मों पर केक लगा दिया उसके पति ने मेरे मम्में चूस कर केक खाया उसके बाद सभी मर्दो ने रमा के बगल में राजेश्वरी कविता और निर्मला को भी मैंने केक खिलाया और उन लोगों ने भी मुझे खिलाया

उसके बाद जब मैं कांतिलाल को केक खिलाने गयी तो उसने मुझे मना कर दिया मैं सोच में पड़ गयी कि आखिर क्या हुआ पर तभी रमा ने कहा- ये मर्द ऐसे नहीं खाएंगे उसने केक में लगी क्रीम उठाकर मेरे दोनों मम्मों में लगा दी

कांतिलाल ने आंख दबाते हुये कहा- हां केक अब स्वादिष्ट लगेगा

वो मेरे दोनों मम्मों से क्रीम चाटकर खा गया बाकी के मर्दो ने भी वैसे ही क्रीम लगा लगा कर मेरी और बाकी की औरतों के मम्मों से क्रीम खाया

इसके बाद सब एक दूसरे के साथ संगीत में झूमने लगे और खाने पीने लगे करीब एक घंटे तक हमारी ये मौज मस्ती चली हालांकि मुझे नाचना नहीं आता था पर मर्दो के आगे उस दिन क्या चलता और बाकी की औरतें भी वैसी ही थीं

उन लोगों ने मुझे भी जबरदस्ती अपने साथ खूब नचाया शायद इसे ही वासना का नंगा नाच कहते हैं जिसमें हम सब नंगे थे बहुत रात हो गयी थी और मुझे नींद भी आने लगी थी पर वहां सभी लोग मदमस्त थे किसी को रात की कोई चिंता नहीं थी

इसी बीच कविता ने उसी केक में से थोड़ा क्रीम लेकर रवि के लंड पर लगाया और उसे चाटकर खा गयी इससे बाकी लोगों के दिमाग में एक खेल आ गया कांतिलाल ने सब लोगों को भीतर बिस्तर वाले कमरे में जाने को कहा और नीचे फ़ोन कर कुछ मंगवाया

हम सब भीतर चले गये तो कांतिलाल गाउन पहन कर बाहर ही रहा 10 मिनट के बाद कोई आया और वो चीज़ देकर चला गया फिर कांतिलाल ने हम सबको बाहर आने को कहा जब हम सब बाहर आए तो रमा ने कहा किससे शुरूआत की जाए

कांतिलाल ने कहा- औरतों से शुरू की जाए

इस पर रमा ने मुझसे बोला कि शुरूवात तुमसे ही होगी
उसने मुझे सोफे पर बैठने को कहा और मुझे जांघें फैला कर चूत खोल देने का निर्देश दिया

कांतिलाल ने जो मंगवाई थी वो क्रीम थी रमा ने थोड़ी सी क्रीम को मेरी चूत में लगा दिया और कहा कौन आएगा पहले इस पर राजशेखर ने पहले हां किया और सामने मेरे आकर घुटनों के बल बैठ गया

उसने मेरी जांघें पकड़ीं और अपनी जुबान बाहर निकाल कर एक बार में ही सारी क्रीम चाट कर साफ कर दी वो पूरी क्रीम खाकर उठ गया तो रमा ने मेरी चूत में फिर से क्रीम लगा दी उसके बाद रवि ने चाट लिया

इसी तरह कमलनाथ और अंत में कांतिलाल ने मेरी चूत से क्रीम को चाटा फिर मेरे बाद रमा मेरी जगह बैठ गयी फिर से वही खेल चला उसके बाद राजेश्वरी कविता और निर्मला की बारी आयी

अब इसके बाद मर्दो की बारी आयी सबसे पहले कमलनाथ तैयार हो गया और उसने मुझे बुलाया पर मैंने मना कर दिया तो सब लोग मुझे ज़ोर देने लगे
पर मैंने कहा कि मुझे ये सब नहीं आता

तब निर्मला आगे बढ़ी और बोली- इसमें क्या है यार लंड मुंह में लेकर ही तो चूसना है और क्रीम चाट लेनी है ये बोलते हुये निर्मला नीचे बैठी

उसने लंड को नीचे से एक उंगली लगा कर ऊपर किया और पूरा मुंह खोल उसे अपने मुंह में भर कर मुंह दबा कर क्रीम चूसने लगी उसने लंड से पूरी क्रीम साफ कर दी

उसके बाद उसने मुझसे कहा- देख लो केवल ऐसे करना है

कमलनाथ ने फिर से क्रीम को लगाया और मुझे बुलाया मैं थोड़ा शर्माती हुयी आगे बढ़ी और मैंने निर्मला की ही तरह क्रीम चूसकर उसके लंड को साफ कर दिया मेरे बाद रमा राजेश्वरी और कविता ने उसके लंड से क्रीम को चखा

फिर कांतिलाल रवि और राजशेखर के लंड से हम सबने बारी बारी से क्रीम को चखा हम सब अब फिर कुछ नया करने की सोचने लगे क्योंकि जिस तरह अंदर का माहौल अब बन चुका था किसी को ना थकान महसूस हो रही थी ना नींद आ रही थी

होटल के बाहर भी बहुत शोर शराबा हो रहा था नये साल के उद्घाटन में गीत संगीत और पटाखे चारों तरफ शोर मचा रहे थे सभी मर्द पहले से अधिक उत्साहित दिख रहे थे और जैसा मुझे लग रहा कि ये लोग फिर से संभोग के लिए तैयार होंगे

मेरा तो ये सोच कर ही सिर में दर्द होने लगा था कि अभी 1 बज गये थे और अगर फिर से ये चारों संभोग करना चाहेंगे तो हमसब औरतों की तो हालत खराब हो जाएगी ऐसा मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि मर्दो के अक्सर एक बार झड़ने के बाद दोबारा झड़ने में काफी समय लगता है

दूसरी बात ये थी कि यदि एकल पुरूष और स्त्री संभोग करते हैं तो उनका ध्यान एक चीज़ पर केंद्रित रहता है और उन्हें चरम सीमा तक पहुंचने में कोई बाधा नहीं होती पर यह हम सब साथ थे संभवत एक दूसरे में ध्यान केंद्रित करना संभव नहीं था

जिसके वजह से उत्तेजना में उतार चढ़ाव बन जाता तो चरम सीमा तक आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता था क्योंकि यदि कोई ध्यान केंद्रित भी कर भी ले तो हो सकता है कोई दूसरा या तीसरा हममें से उसे भंग कर दे और ये होना ही था क्योंकि मनुष्य समूह में बिना बात किए किसी को छेड़े बगैर नहीं रह सकते

हमारे लिए इसलिए परेशानी की बात थी क्योंकि अधिक घर्षण से चूत में दर्द होने लगता है और अधिक समय तक जांघें भी चौड़ी कर रहना कठिन होता है बरहराल हम सब के लिए एक अच्छी बात ये थी कि हम 4 के मुकाबले 5 औरतें थीं तो इस वजह से किसी एक को थोड़ा विश्राम मिलने का मौका मिल जाता

मेरा सोचना सही निकला और अभी तक राजशेखर ने मेरे साथ एकल संभोग नहीं किया था तो उसकी नज़र मुझ पर बहुत पहले से ही थी पूरे समय वो मेरे आगे पीछे घूमता रहा था और जब कभी उसे मौका मिलता था वो मुझे छूने छेड़ने से रुकता नहीं था

एक बात मुझे अचंभित करने वाली ये लग रही थी कि इतनी देर के बाद भी हम 5 औरतों को नंगा देखने छूने और छेड़ने के बाद भी किसी के लंड में कोई तनाव नहीं दिख रहा था सभी सामान्य थे

कुछ देर के बाद देखा तो कांतिलाल कविता के पास जाकर उसे छूने टटोलने लगा था इसी तरह राजशेखर भी मेरे पास आ गया और मुझसे बातें करते हुये मेरी तारीफ करने लगा लगभग सब एक दूसरे के साथ व्यस्त हो चले थे

तभी राजेश्वरी ने बोला- अरे सारिका कल जो तुमने रंडी का रोल किया था वो हमें भी दिखाओ यार

इस पर निर्मला ने उससे मजाक करते हुये बोला- तुम्हें भी रंडी बनना है क्या?

राजेश्वरी ने उत्तर दिया- क्या यार कोई एक्टिंग कर लेगा तो क्या वो सच में रंडी हो जाएगी क्या? मैं तो केवल सारिका की एक्टिंग देखना चाहती हूं

रमा ने तब तुरंत कहा- अरे यार पार्टी में सब ठंडे क्यों पड़ गये रोलेप्ले होना था पर कोई उस बारे में नहीं सोच रहा

कविता ने भी कहा- हां कल इन लोगों ने हम लोगों के बगैर ये खेल खेला था आज हम सबके साथ खेलना होगा

अब ये निर्णय लेना था कि क्या खेल खेला जाए सब सोचने लगे और अपनी अपनी बात सामने रखने लगे पर किसी की बात मजेदार नहीं लग रही थी

तभी मेरे दिमाग में एक बात आयी तो मैंने सबके सामने रखी मुझे दरअसल याद आया कि बचपन में हम गुड्डा गुड़िया और शादी ब्याह का खेल खेलते थे और कभी कभी मुहल्ले के सारे बच्चे मिलकर शादी ब्याह का खेल खेलते थे

मेरी ये तरकीब सबको बहुत पसंद आयी और सब राजी हो गये अब यहां से हमने कहानी बनानी शुरू की और सबके किरदार चुने गये कविता वो लड़की थी जिसकी शादी हुयी थी उसके लिए कांतिलाल पति बन गया

राजशेखर और निर्मला लड़के के मां बाप बन गये और कमलनाथ और राजेश्वरी लड़के के भाई और लड़की की बहन बन गये रमा और रवि लड़की के चाचा और चाची बन गये और मैं अकेली बची तो मैं लड़की की मां बन गयी

इस खेल का मूल मंत्र यही था कि अलग अलग उम्र स्थिति और रिश्तों में लोग अलग अलग अंदाज में संभोग करते हैं संभोग का लक्ष्य या तो बच्चे पैदा करना होता है या शारीरिक सुख प्राप्त करना

तो ये खेल ऐसा था कि हम सबको किरदार में रहकर संभोग को परिभाषित करना था कहानी बन चुकी थी और सबको अपने अपने किरदार के बारे में समझा दिया गया था अब खेल शुरू करना था

हम सबने अपने अपने वही कपड़े पहन लिए थे जो सुबह पहने थे मान लिया गया कि शादी हो चुकी थी और दूल्हा दुल्हन का सुहागरात का सीन होना बाकी था यानि कविता और कांतिलाल को पहली बार संभोग के दृश्य दिखाना था जिसमें कुंवारी कविता और कांतिलाल का कौमार्य भंग होने था

बिस्तर तैयार हो गया था और कविता और कांतिलाल भी तैयार होकर बिस्तर पर आ गये थे हम सब बाकी के लोग वहीं सोफे पर अपनी अपनी जगह पकड़ बैठ गये

कविता नई दुल्हन की तरह बिस्तर पर बैठी थी फिर कांतिलाल आ गया कविता के चेहरे पर ठीक नई दुल्हन की तरह शर्माने और घबराने का भाव था वहीं कांतिलाल भी पहली बार शारीरिक सुख पाने के लिए उत्सुक दिख रहा था

कांतिलाल ने कविता के बगल बैठ कर उसके चेहरे को हाथ से ऊपर उठा कर उसे देखने लगा कविता ने शर्म से सहम कर कांतिलाल को पकड़ लिया

अब कांतिलाल उसके होंठों को चूमने लगा जिससे कविता और अधिक शर्म से उससे दूर होना चाहने लगी थी मगर जैसा कि असल जीवन में होता है कांतिलाल भी उसे अपनी बांहों की पकड़ से मुक्त नहीं होने दे रहा था

फिर कांतिलाल कविता को अपने वश में करने की प्रयास तेज करने लगा कविता ज्यादा देर तक उसे रोक नहीं पाई और फिर उसने खुद को कांतिलाल को समर्पित कर दिया क्योंकि पति के नाते ये उसका अधिकार था

कांतिलाल ने उसे चूमते हुये नंगा करना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में कविता बिलकुल नंगी बिस्तर पर थी कांतिलाल ने भी अपने कपड़े उतारे और फिर कविता के पूरे बदन से खेलना शुरू कर दिया

कांतिलाल ने कविता को सिर से लेकर पांव तक चूमा फिर आगे से लेकर पीछे तक चूमा और मम्मों को जी भरकर चूसने के बाद उसकी टांगें फैला दीं उसकी चूत पर टूट पड़ा

कविता की चूत की दरार को कांतिलाल ने हाथों से फैला कर जहां तक संभव था अपनी जीभ को उसमें घुसाने का प्रयास किया उसकी चूत गीली होकर चिपचिपी दिखने लगी थी

कविता भी अब गर्म हो चुकी थी पर अपने किरदार के वजह से वो केवल कसमसा रही थी कुछ देर बाद कांतिलाल उठा और अपना लंड कविता के मुंह में देकर इसे चूसने को कहा

कविता शरमाती हुयी उसके लंड को ऐसे चूसने लगी जैसे कि वो ये सब जीवन में पहली बार कर रही हो कविता ने कांतिलाल का लंड चूस कर एकदम कठोर बना दिया था और अब कांतिलाल अपने लंड को चूत से मिलाप कराने को व्याकुल होने लगा

उसने कविता को चित लिटाया और उसकी टांगें फैला कर उसके बीच में चला गया कांतिलाल ने अपने घुटने मोड़े और कविता की जांघों को अपनी जांघों के ऊपर रख कर कविता के ऊपर लेट कर उसके होंठों को चूमने लगा

कविता ने कांतिलाल की कमर को पकड़ रखा था तभी कांतिलाल ने अपना बांया हाथ नीचे किया और अपने लंड को पकड़ कर कविता की चूत में प्रवेश कराने लगा

चूत कविता की चिकनाई से भरी हुयी थी इस वजह से लंड का सुपारा तो बिना किसी दबाब के अंदर चला गया कविता ठीक वैसे ही कराह उठी जैसे कोई कुंवारी लड़की उस वक्त कराहती है जब पहली बार किसी मर्द के जननांग को अपने भीतर महसूस करती है

सब कुछ एक नाटक ही था पर उन दोनों ने इस नाटक में जान डाल दी थी कांतिलाल ने अपना संतुलन बनाया और सही स्थिति में आकर एक ही ठोकर में अपना समूचा लंड कविता की चूत में उतार दिया

कविता और ज़ोर से चीख पड़ी उम्म्ह अहह हाय ओह और उसकी चीख सुन हम सबके मन में भी उत्तेजना सी आने लगी हम सभी ने एक दूसरे को देख मुस्कुराते हुये उनके इस प्रदर्शन पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की

सामने बिस्तर पर सुहागरात का खेल जारी था और अपने अगले पड़ाव को पार कर चरमसुख की ओर अग्रसर था उस एक ठोकर के बाद कांतिलाल ने अपने चूतड़ों को आगे पीछे करना शुरू कर दिए

धीरे धीरे उसका लंड चूत में अंदर बाहर होने लगा कुछ ही पलों में कविता और कांतिलाल एक दूसरे में घुल से गये और एक दूसरे का परस्पर साथ देने लगे कांतिलाल ने धक्कों की गति बढ़ानी शुरू कर दी तो कविता की भी सिसकियां बढ़ने लगीं

बहुत ही कामुक तरीक़े से दोनों संभोग में विलीन हो चुके थे क्योंकि दोनों को ही एक दूसरे में बहुत आनंद आ रहा था हम सब भी बड़े मजे से उनकी ये कामक्रीड़ा देख रहे थे बहुत ही लुभावना दृश्य चल रहा था मानो सच में किसी की सुहागरात मन रही हो

कांतिलाल धक्के मारते मारते हांफने लगा था पर धक्कों की ताकत और रफ्तार में कोई कमी नहीं आने दे रहा था वहीं कविता भी उसका पूरा सहयोग दे रही थी और किसी भी तरह से कांतिलाल का जोश ना कम हो इसके लिए वो बारबार उसके होंठों गालों गले और छाती को चूमती हुयी उसका उत्साह बढ़ा रही थी

स्त्रियों के कामुक शरीर से कहीं अधिक उनकी कामुक सिसकियां और कराहने की आवाजें होती हैं और हर धक्के पर कविता के मुंह से ये बाहर आ रहे थे पूरा बिस्तर ज़ोर के धक्कों के कारण हिल रहा था

तभी कांतिलाल ने तेज़ी से कविता को उठाया और बिना लंड बाहर किए खुद पीठ के बल गिर गया कांतिलाल ने संभोग का आसन बदल लिया था और अब कविता कांतिलाल की सवारी करने लगी थी

कविता ने बिना समय बर्बाद किए झट से अपने हाथों को कांतिलाल के सीने पर रखा और घुटनों पर वजन डाल कर अपने मदमस्त चूतड़ों को आगे की तरफ धकेलते हुये लंड पर अपनी चूत को रगड़ना शुरू कर दिया

कांतिलाल तो मजे से यूं तिलमिला उठा कि उसने झट से उठकर कविता के मम्मों को मुंह में भर चूसना शुरू कर दिया और दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को दबाने लगा कविता भी अब झड़ने को होने लगी थी और उसके मुंह से चीखें निकलनी शुरू हो गयी थीं

कांतिलाल समझ गया कि कविता झड़ने लगी है इसलिए उसने भी अब नीचे से झटके देने शुरू कर दिए कुछ ही पलों में कविता सिसकती चीखती हुयी अपनी चूत का रस से कांतिलाल के लंड को नहलाने लगी और फिर कुछ झटके मारते हुये कांतिलाल के गले से लग ढीली पड़ने लगी

पर कांतिलाल तो अभी तक जोश में था उसने कविता को नीचे बिस्तर पर गिरा दिया खुद को करवट लेकर एक किनारे किया और उसकी एक टांग सीधी करके दूसरी को कंधे पर रख ली

बाकी कहानी hindi sex story के अगले भाग में

Antarvasna Sex Stories :- काम वासना की आग- 24

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