आप ने antarvasna sex stories के पिछले भाग में पढ़ा इसी वजह से मेरे अगल बगल क्या हो रहा मुझे उसकी ना कोई चिंता थी ना कुछ नजर आ रहा था मेरी व्याकुलता इतनी बढ़ गयी थी कि मैं रह रह के झटके खा रही थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे पानी का फव्वारा उसके मुंह में ही छोड़ दूंगी अब आप antarvasna sex stories में आगे पढ़े
Antarvasna Sex Stories 21
मैं संभोग के लिये पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी और पल भर में मेरी अपेक्षा पूरी हो गयी निर्मला ने मेरे चूतड़ों पर थपकी मारी और मुझे रवि के लंड के ऊपर बैठने बोलने लगी
निर्मला- सारिका पहले तुम सवारी करो
उसकी बातें सुन रवि ने मुझे खुद से अलग किया और मेरा हाथ पकड़ मुझे अपनी ओर खींचने लगा उसने अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुये मुझे बैठने का संकेत दिया
मैं उसके कंधों पर दोनों हाथ रखते हुये अपनी टांगें उसके अगल बगल फैला कर उसके लंड के ऊपर बैठ गयी उसका लंड ठीक मेरी चूत द्वार पर जाकर अड़ गयी
रवि ने अपने लंड को सही दिशा दिखाते हुये लंड का सुपाड़ा मेरी चूत द्वार में प्रवेश करा दिया साथ ही उसने मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ लिया उसका कठोर लंड मुझे बहुत गर्म महसूस हो रहा था
फिर मैंने धीरे धीरे अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करके लंड को चूत में प्रवेश कराना शुरू किया कोई 3-4 बार ऊपर नीचे होते ही उसका सम्पूर्ण मोटा और कठोर लंड मेरी मुलायम चूत की दीवारों को भेदता हुआ मेरे गर्भाशय से टकराने लगा
उसके लंड से चिकास और मेरी चूत के गीलापन से आसानी से लंड गुदगुदाहट करता हुआ भीतर चला गया एक संतुष्टि की कामना जगाते हुये आनंद की शुरूआत हुई तो मैंने पूरी जिम्मेदारी और कामुकता से अपने चूतड़ों को ऊपर नीचे करते हुये संभोग की प्रक्रिया शुरू कर दी
जब उसका लंड पूरी तरह से जब मेरी चूत में हिल मिल गया तो मैंने अपनी नजरें रवि से मिलाई उसकी आंखें मस्ती से भरी हुई थीं और चेहरे पर कामुकता भरी मुस्कान थी मैं जैसे जैसे धक्के देते जा रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे
मैंने उसके गले में हाथ डाल कर थोड़ी और गहराई में जाने लायक धक्के देने शुरू किए तो वो अपने होंठों को होंठों से भींचता हुआ मुझे चूमने को लपक पड़ा
उसने अपने दाएं हाथ को मेरे चूतड़ से अलग किया और पीछे से मेरे बालों को पकड़ मेरे सिर को खींच कर मेरे होंठों से हाथ लगा कर चूसने और चूमने लगा उसका सुपाड़ा मेरी चूत के भीतर अब तेज धार धार तलवार सा महसूस होने लगा था
जिससे मैं और अधिक ताकत और मस्ती में अपनी कमर हिला हिला उसके लंड को अपनी चूत से मलने लगी थी रवि के ऐसे उत्तेजक भाव ने मेरे भीतर वासना की एक नई ऊर्जा भर दी थी और मैं पूरे आनंद के सागर में गोते लगाने लगी थी
पीछे से शायद निर्मला रवि के अण्डकोषों से खेल रही थी या उनको सहला रही थी इसलिये मुझे उसके हाथों का स्पर्श कभी कभी मेरे चूतड़ों पर महसूस हो रहा था मैं अपनी ही धुन में धक्के मारे जाने से मस्ती में और अधिक खोई जा रही थी
करीब 5 मिनट हो गये थे और मेरी सम्भोग की खुमारी सातवें आसमान को छूने को थी तभी निर्मला ने मेरे चूतड़ों पर 2-3 थपकी मारते हुये कहा बस भी करो सारिका अब मेरी बारी है
उसकी बातें मेरे कानों में पड़ते ही मेरी रफ्तार और मस्ती दोनों पर रोक लग गयी मुझे हल्का निराशा सी महसूस हुई लेकिन मैं उन सबकी तरह नहीं थी सो मैंने मुस्कुराते हुये शर्मीले अंदाज़ में उसके कथन का पालन किया और मैं रवि की गोद से उतर गयी
मैं बहुत अधिक उत्तेजित हो चुकी थी इस वजह से जब रवि का लंड मेरी चूत से बाहर निकल रहा था तो मेरी अंतरात्मा जैसे कहने लगी कि मत हटो कुछ पल और रुक जाओ मुझे ये पल ऐसा लगा जैसे कोई प्रिय वस्तु मुझसे छीनी जा रही है
पर मुझे ना चाहते हुये भी रवि से अलग होना पड़ा अब मैं बगल में बैठ कर खुद ही अपनी चूत को हाथ से सहलाने लगी मेरे अलग होते ही रवि ने निर्मला को धकेलते हुये उसे नीचे जमीन पर गिरा कर लिटा दिया और उसकी दोनों टांगें फैला उसके मोटी मांसल जांघों के बीच झुक गया
रवि ने झुक कर पहले तो निर्मला के थुल थुले मम्मों को दबोच कर चूसना शुरू कर दिया वहीं निर्मला ने भी रवि के लंड को एक हाथ से पकड़ हिलाना शुरू कर दिया
उनका ये खेल बस कुछ पल चला और रवि अपने तनतनाये हुये लंड को निर्मला की चूत में घुसाने को पुन तैयार हो गया निर्मला ने भी अपने चूतड़ों को आगे पीछे दाएं बांए करके अपनी चूत की स्थिति उसके लिये बना ली
रवि ने लंड का सुपाड़ा खोल कर हाथ से पकड़ा और निर्मला की चूत की फांकों पर कुछ देर तक ऊपर से नीचे तक रगड़ा फिर लाल सुपाड़ा उसकी चूत में फंसा कर हल्के हल्के धकेलना शुरू कर दिया
इस वक्त निर्मला के चेहरे पर दर्द के भाव दिखने लगे जब रवि अपना लंड उसकी चूत में प्रवेश करने का प्रयास कर रहा था लंड लगभग आधा चला गया था फिर भी निर्मला असहज महसूस कर रही थी
कुछ पल और प्रयास करने के पश्चात निर्मला ने रवि के कमर को पकड़ कर उसे पीछे को धकेला और खुद से अलग कर लिया जब रवि का लंड निर्मला की चूत से बाहर आ गया
तब निर्मला ने अपनी एक हाथ में थूक लिया और अपनी चूत के ऊपर मल कर लंड वापस अपनी चूत में सुपाड़े तक घुसाते हुये रवि को आगे बढ़ने का संकेत दिया
मैं समझ गयी थी कि हम जिस उम्र से गुजर रहे हैं उस उम्र में चूत में नमी जल्दी नहीं आती है निर्मला की चूत भीतर से तो गीली थी मगर ऊपरी चमड़ी और पंखुड़ियां शायद सूखी थीं इसी वजह से उसे तकलीफ हो रही थी
रवि जब अपना लंड धकेल रहा था तो उसकी चूत में ऊपरी चमड़ी और पंखुड़ियां भीतर की ओर खिंची जा रही थीं जिसकी वजह से निर्मला को तकलीफ हो रही थी खैर जब रवि ने संकेत समझा तो धीरे धीरे करके 3-4 बार में अपना लंड पूरी तरह से निर्मला की चूत में प्रवेश करा दिया
फिर दोनों ने एक दूसरे को सजह तरीके से पकड़ कर धक्कों की गति को बढ़ाने लगे कुछ ही पलों में दोनों एक दूसरे को सुख प्रदान करने में रम से गये अब निर्मला खुले दिल से रवि का साथ दे रही थी और दोनों ही तेज धक्कों के साथ मादक सिसकियां भरने लगे थे
दूसरी तरफ बाकी लोग भी संभोग में लिप्त हो चुके थे एक तरफ कमलनाथ के ऊपर रमा सवारी कर रही थी तो दूसरी तरफ कांतिलाल राजेश्वरी को घोड़ी बना कर पीछे से धक्के मार रहा था
उधर राजशेखर कविता की एक टांग उठा सोफे पर टिका कर सामने से खड़े खड़े ही धक्के दे रहा था सबकी कामुक अवस्था देख मेरी उत्तेजना जरा भी कम नहीं हो रही थी जबकि मैं फिलहाल अकेली थी
उन सबको देख कर और कमरे में गूंजती सिसकारियां मेरे हाथों को स्वयं मेरी चूत तक ले जा रहे थे कुछ देर के बाद कविता ने असहजता दिखानी शुरू कर दी क्योंकि उस अवस्था में संभोग कर पाना सबके लिये सरल नहीं होता है
मैं जहां तक अपने अनुभव से जानती हूं कि इस तरह के आसन में मर्दो को ज्यादा आनंद आता है क्योंकि लंड का ऊपरी हिस्सा चूत के अंदर सीधे जाता है जबकि चूत का रास्ता पेट की तरफ होता है
इस वजह से लंड के ऊपरी हिस्से में चूत कठोर तरीके से रगड़ खाती है जिससे मर्दो को अधिक आनंद आता है वहीं स्त्रियों को आनंद तो आता है मगर अधिक समय के घर्षण से पीड़ा होनी शुरू हो जाती है हालांकि अति उत्तेजना की अवस्था में महिलाएं ये पीड़ा भी झेल लेती हैं
कविता के आग्रह पर राजशेखर ने कविता की चूत से अपना लंड बाहर निकाल लिया और उसे सोफे पर थोड़ा आराम करने दिया राजशेखर वहीं खड़े खड़े अपने लंड को हाथ से सहला रहा था कि उसकी नजर मुझ पर पड़ी
मुझे खाली देख कर वो मुस्कुराते हुये मेरे पास चला आया उसे मुझसे किसी तरह के विरोध की आशा नहीं थी क्योंकि ये पहले से तय था मैं भी इस बात से परिचित थी सो मैंने भी किसी तरह का विरोध भाव नहीं दिखाया
जैसा कि मैं खुद ही गरम थी तो मन में भी किसी तरह के विरोध की बात भी नहीं आई वो सीधा मेरे पास आकर मेरे सामने बैठ गया और मेरी टांगें पकड़ अपने दोनों तरफ फैलाते हुये मेरे बीच में आ गया
उसने मेरे मम्मों को दबाया और फिर अपने होंठ मेरे होंठों के पास ले आया मैंने भी बिना संकोच के अपने होंठ उसके होंठों से लगा कर चुम्बन करना शुरू कर दिया वो मुझे चूमते हुये धीरे धीरे धकेलने लगा और ठीक मुझे जमीन पर गिराते हुये वो मेरे ऊपर आ गया
मेरे भीतर वासना की आग तेजी से धधक रही थी और मैं भी उसे अपनी ओर ऐसे खींच रही थी मानो उसे अपने भीतर छुपा लूंगी जिस तरह से वो मेरी जुबान को चूस रहा था और मेरे मम्मों को मसल रहा था उससे लग रहा था मानो अब वो झड़ जाएगा
पर यहां हर मर्द इतना तो अनुभवी था ही कि अपनी उत्तेजना को काबू में कर ले धीरे धीरे राजशेखर मेरे होंठों को छोड़ कर मेरे मम्मों को चूसने लगा मेरे दूध का घूंट पीते ही उसमें ताजगी सी दिखने लगी वो एक हाथ से मेरी एक मम्में को मसलते हुये मेरे दूसरे मम्में का पान करने लगा
थोड़ी ही देर के बाद वो मेरी चूत तक पहुंच गया और मेरी चूत को चूमने और चाटने लगा उधर कविता खुद कांतिलाल के पास गयी और उसे राजेश्वरी से अलग होने को कहा राजेश्वरी भी बहुत अधिक गर्म थी सो वो ज्यादा देर अलग होकर ना रह सकी
जब तक कांतिलाल और कविता ने एक दूसरे को चूमना चाटना शुरू किया वो कमलनाथ के पास चली गयी कमलनाथ ने भी रमा को धक्के मारना बन्द किया और राजेश्वरी को अपनी गोद में बिठा लिया
इधर राजशेखर ने जी भरकर मेरी चूत चाटने के बाद मुझे उठाया और मुझे कुतिया की तरह झुक जाने का इशारा किया मैं उसके निर्देशानुसार कुतिया की तरह झुक गयी और मैंने अपना सिर जमीन पर रख अपने चूतड़ों को पूरा उठा दिया
राजशेखर ने पीछे आकर अपना लंड एक बार में ही मेरी चूत की गहराई में उतार दिया उसका लंड मुझे बहुत ही कड़क महसूस हुआ उसके लंड पर नसें एकदम सख्त लग रही थीं और सुपाड़ा आग की तरह गर्म था
करीबन 7 इंच लंबा और मोटाई 3 इंच लंड की वजह से जब उसने धक्का मारना शुरू किया तो मस्ती मैं में कसमसाने लगी मैं अभी इतना तो अंदाज लगा सकती थी कि मेरे साथ उसे भी काफी मजा आ रहा था
उसका लंड सरसराता हुआ मेरी चूत में आ जा रहा था और मुझे कराहने पर विवश करे दे रहा था वो कभी मेरे ऊपर पूरा झुक मेरे मम्मों को दबाते हुये धक्का मारता तो कभी मेरे बड़े बड़े चूतड़ों को दबाते सहलाते मजा लेने लगता
जैसे जैसे संभोग बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे हम दोनों में जोश भी बढ़ता जा रहा था मैं अब अपने कानों में उसके हांफने की आवाज सुन सकती थी करीब 10 मिनट उसने मुझे यूं ही बिना रुके धक्के मारे और फिर वो रुक गया
कुछ पल के लिये उसने अपना लंड पूरी तरह मेरी चूत की गहराई में दबा दिया और सांस लेने लगा इसके बाद उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया और मुझसे अलग हो गया
मैं इतनी अधिक गर्म हो चुकी थी कि मैंने अपने चूतड़ों को हिलाते हुये अपनी सहेली के पति को धक्के लगाने का संकेत दिया तो वो मैं उसी अवस्था में सिर जमीन पर टिकाए आंखें बंद किए इन्तजार करने लगी कि दोबारा वो लंड अंदर घुसाएगा
थोड़े इंतजार के बाद उसने मेरी चूत के मुख से सुपाड़ा रगड़ा और फिर ज़ोर के झटके के साथ लंड फिसलता हुआ मेरी बच्चेदानी से जा टकराया मुझे पहले की भांति इस बार का लंड कुछ अलग सा लगा इससे मैं समझ गयी ये राजशेखर नहीं है
मैंने सिर पीछे घुमा कर देखा तो सुर्ख लाल आंखें और उन आंखों में आक्रामक वासना की भूख थी ये कांतिलाल था शायद कांतिलाल का मन अब भी मुझसे भरा नहीं था अब मेरी चूत में ये कांतिलाल का लंड था जो अब मेरी चीखें निकालना चाहता था
कांतिलाल को देख कर मैंने अपना सिर उठाना चाहा पर उसने मेरे बालों को पकड़ कर मेरे ऊपर झुकते हुये मेरे कंधों पर दांत गड़ाने लगा और अपने लंड को मेरी बच्चेदानी में गड़ाते हुये मुझे उसी अवस्था में रोक लिया
मैं अब तक इतनी अधिक गर्म हो चुकी थी कि उसके सुपाड़े के दबाव से हो रही पीड़ा भी मुझे आनंदमय लग रहा था मैंने अपने चूतड़ों को हिलाते हुये उसे धक्के लगाने का संकेत देना शुरू कर दिया
कांतिलाल भी मेरी चुनौती स्वीकारते हुये अपनी मर्दानगी का परिचय देने लगा उसने अपनी एक हाथ की ताकत से मेरे बाल पकड़े दूसरे हाथ की एक उंगली मेरे मुँह में मुझे चूसने को दे दी वो हल्के हल्के से अपने दांत मेरी पीठ पर गड़ाते हुये लंड को थोड़ा बाहर निकालता और ज़ोर से झटका मार देता
मुझे उसके इस अंदाज से बहुत मजा आ रहा था वो केवल आधे इंच भर ही लंड बाहर खींच कर वापस झटका मारता जिससे मेरी बच्चेदानी में चोट लगती मुझे ऐसा लग रहा था मानो उसने मेरी बच्चेदानी की दूरी नाप रखी हो
मैं भी उस मीठे दर्द की अनुभूति बार बार चाहने लगी थी जिसके कारण मैं कांतिलाल के लिये अपने चूतड़ और ऊंचे कर दिए ताकि उसे मेरी चूत का अधिकतम मुख मिले
मैं व्याकुलता से भर गयी और उसकी उंगली को हल्के दांतों से काट काट कर चूसते हुये अपने हाथ पीछे करके उसकी जांघों को सहलाने लगी
करीब 5 मिनट उसने ऐसे ही मुझे झटके मारे और मैं सिसकती कराहती मजे लेते रही फिर उसने अपना लंड बाहर निकाल कर मुझे उठाया और अपनी तरफ घुमाकर मुझे अपने ऊपर चढ़ने को कहा
इतनी देर में बाकी लोगों ने भी अपने अपने साथी बदल लिये थे रवि अब राजेश्वरी के साथ संभोग कर रहा था और कमलनाथ कविता के साथ लगा था रमा और निर्मला राजशेखर के साथ थी
मैंने देखा कि मेरे कांतिलाल के ऊपर चढ़ने तक राजशेखर रमा को सीधा लिटा कर ऊपर से धक्के मार रहा था और फिर निर्मला को घोड़ी बना उसके साथ संभोग करने लगा था
मुझे कांतिलाल के ऊपर चढ़ कर उसका लंड अपनी चूत में लेने में ज्यादा देर नहीं लगी थी कांतिलाल के निर्देशानुसार मैं लंड पर सीधी बैठ थी और आगे की तरफ अपने चूतड़ों को धकेल धकेल कर संभोग करने लगी थी
मुझे अब उसका लंड बहुत मजेदार लगने लगा था और अब खुद को रोक पाना असंभव सा लगने लगा था मैं अब जल्द से जल्द झड़ जाना चाहती थी और कांतिलाल को भी शायद अंदेशा हो चुका था
मैं जैसे जैसे धक्के दे रही थी वैसे वैसे वो अपनी कमर उठा देता मेरे मम्मों को तो उसने ऐसे दबोच रखा था जैसे उनमें से सारा रस निचोड़ लेना चाह रहा हो मुझे अभी केवल कुछ पल ही हुये थे धक्के देते और अब मैं झड़ने को थी सो मैंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी
बाकी कहानी hindi sex story के अगले भाग में
Antarvasna Sex Stories :- काम वासना की आग- 22