आप ने antarvasna sex stories के पिछले भाग में पढ़ा हम दोनों के घर भी थे पर आस पास के लोगों को शक हो सकता था कि कोई स्त्री अथवा पुरुष इतनी देर घर के भीतर क्या कर रहा था किसी की भी नजर पड़ सकती थी इसलिये मैं उसकी बातें सुनती रही और सोचती रही कि आगे वो क्या कहेगा अब आप antarvasna sex stories में आगे पढ़े
Antarvasna Sex Stories 11
बातों के बढ़ते ही उसने फिर से मुझे अपने प्रति रिझाने के प्रयास शुरू कर दिया और खुद ही उसने कह दिया कि यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहेगी ना मेरे पति को पता चलेगा ना प्रीति को
मैंने भी सोचा कि डर उसे भी है इसलिये वो किसी से कुछ नहीं कह सकता और मुझे भी लगा कि उस पर भरोसा किया जा सकता था फिर मैंने उससे साफ साफ शब्दों में कह दिया कि ठीक है
मैं तैयार हूं पर कहीं शहर से बाहर व्यवस्था करनी होगी दूसरा मैंने उसे ये भी साफ कर दिया कि संबंध सिर्फ शारीरिक हों ना कि भावनात्मक तथा हम संबंध बना भी लेते हैं तो वो पहली और अंतिम बार होगा
वो आगे मुझे कभी फिर से बाध्य नहीं करेगा अगर मेरी इच्छा ना हुई तो इस पर वो ऐसे मान गया जैसे उसकी मजबूरी हो मैं पहले से सारी संभावनाएं बना लेना ठीक समझती हूं ताकि वो बाद में संबंध बनाने के लिये मेरा भयादोहन ना करे
उसने तब मुझे पूरा आश्वासन दिया और मिलने की जगह सोचने का बोल कर उसने फोन काट दिया अगले दिन पति शाम तक आने वाले थे तो सुखबीर ने मुझे दोपहर फोन कर अपनी योजना बताई
पर मैंने उसे कह दिया कि आज पति शाम तक आ जायेंगे इसलिये किसी और दिन इस पर विचार करेंगे मेरी हां सुन सुखबीर पूरी तरह से व्याकुल हो गया पर इधर पति दोबारा कब जाएंगे अभी उसका भी कोई ठिकाना नहीं था
एक हफ्ता बीत गया पर पति यहीं थे मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था पर एक तरफ से ठीक ही था क्योंकि जब से आये थे वे अधिकांश समय घर पर ही रहते थे तो मेरा मन काम वासना की ओर नहीं जाता था
एक रात वो पीने बैठे थे तो उन्होंने थोड़ी अधिक पी ली और इस वजह मुझसे और दिनों की अपेक्षा अधिक बातें करने लगे बातों बातों में उन्होंने बताया कि अब उन्होंने काम देखने के लिये एक आदमी रख लिया इस वजह से वे घर पर ज्यादा समय रहने लगे
फिर अगले हफ्ते उन्होंने बुधवार के दिन रामगढ़ जाने की बात बताई और कहा कि रात तक आयेंगे उधर सुखबीर व्याकुल हुआ जा रहा था और उसके संदेशों में ये साफ झलकता था दो दिन के बाद मैंने उसे संदेश भेज दिया कि बुधवार को दिन भर के लिये अकेली रहूंगी
उसने मुझे तुरंत अपनी योजना बता दी शुरू में तो अटपटा लगा पर सोचने से सही लगा उसकी योजना थी कि हम कहीं होटल या घर की जगह ऐसी जगह मिलें जहां कोई आता जाता ना हो मैं नई थी तो उसी ने जगह का चुनाव किया
बुधवार के दिन आ गया और पति मेरे सुबह सुबह ही निकल गये सुखबीर ने उस दिन दुकान नहीं खोली और उसने करीब 11 बजे मुझे स्टेशन के पास मिलने को कहा मैं घर से निकल कर थोड़ी दूर पैदल चली फिर ऑटो पकड़ स्टेशन की ओर चल पड़ी
स्टेशन पहुंचने पर देखा कि सुखबीर अपनी मोटर साईकल पर मेरा इंतजार कर रहा था मुझे देख उसके चेहरे पर ऐसी खुशी आयी कि क्या कहूं
मैंने साड़ी पहनी थी तो एक तरफ होकर उसकी मोटर साईकल पर बैठ गयी और उसे एक हाथ से पकड़ लिया पहली बार मैंने उसे छुआ था और मुझे महसूस हुआ कि मेरे छुअन से उसका शरीर सिहर उठा था
वो एक फौजी आदमी था और मुझे उसका बदन बहुत कठोर लगा मैंने सोचा कि ये सरदार व्यवहार से तो बहुत कोमल है और आसानी से वश में आ जाता है पर जैसा कठोर बदन है कहीं मुझे अपने वश में ना कर ले
उसने गाड़ी चलाना शुरू किया और एक गली से होता हुआ गाड़ी शहर से बाहर ले आया उसकी गाड़ी अब उस रास्ते पर थी जिधर कोयले की खदानें थीं
मैंने उससे पूछा कि आखिर कहां ले जा रहे हो उसने जवाब दिया कि ये जगह ऐसी है जहां कोई नहीं आता और बिल्कुल सुरक्षित है करीब 7-8 किलोमीटर आने के बाद कुछ सरकारी घर दिखने लगे
अधिकांश घर टूटे हुये थे और एक दो घर जर्जर अवस्था में थे थोड़ी ही दूर में पानी से भरी कोयले की खदान थी जो बन्द हो चुकी थी उसने एक घर के पास ले जाकर गाड़ी रोकी और कहा यही वो जगह है
मैं चौंक गयी और कहा- यहां तो कोई भी आ सकता है और अगर किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी
उसने कहा- इधर कोई नहीं आता जाता है ये पूरा खंडहर है और ये घर मेरा ही है
उसने पहले तो एक टूटे घर के भीतर अपनी गाड़ी छिपा दी फिर जो उसका घर था वो सही हाल में था उस पर ताला लगा हुआ था उसने ताला खोला और मुझे जल्दी से अंदर आने को कहा
उसने बताया कि उसके पिता पहले यहीं काम करते थे और इसी क्वार्टर में रहते थे जब खदानें नजदीक आ गयी तो सबको जाने को कहा गया और दूसरी जगह क्वार्टर दे दिए गये
अब ये सरकारी होने की वजह से इन पर कोई ध्यान नहीं देता है इसलिये जैसे का तैसा पड़ा हुआ है अंदर पूरा अंधेरा था तो उसने एक खिड़की खोली पर जैसे ही धक्का दिया खिड़की का दरवाजा सड़े होने की वजह से एक तरफ से टूट गया
खिड़की से रोशनी आयी तो पूरा धूल मिट्टी से घर भरा दिखा कहीं ना बैठने की जगह थी ना खड़े होने की और केवल दो ही कमरे थे और दोनों एक जैसे ही थे घर में कोई भी सामान नहीं था
फिर उसने एक कोने के पास से एक बड़ी सी गठरी निकाली मैं समझ गयी कि प्रीति के अलावा ये सरदार और भी बाहर अपनी जुगाड़ भिड़ाता रहता है पर मुझे क्या फर्क पड़ता था
उसने उस गठरी को खोला और एक तरफ बिछा दिया फिर बाहर जाकर अपनी गाड़ी से एक चादर और एक तौलिया लेकर आया उसने चादर बिछा कर मुझे बैठने को कहा
बैठते ही मैंने उससे कहा- आप हमेशा यहीं जुगाड़ लाते हो क्या?
उसने हंसते हुये मुझे सफाई दी- नहीं ये तो दो दिन पहले लाकर रखी है
मैं हंस पड़ी
उसने मुझसे कहा- आपके पति कब तक आयेंगे?
मैंने कहा- रात तक पर मैं शाम होने से पहले वापस जाना चाहती हूं
पता नहीं क्यों मुझे उसके सामने कोई शर्म हया नहीं आ रही थी इसलिये मैं खुद ही बोल पड़ी- जो भी करना है जल्दी कर लेते हैं
इतना कहने की देरी थी कि उसने तुरंत मेरा पल्लू खींच कर नीचे कर दिया और मेरे तने हुये मम्मों को ऐसे देखने लगा जैसे कोई वहशी कुत्ता हो
पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो खुद कुछ करे बल्कि उसने मुझे डरे हुये शब्दों में ब्लाउज खोलने को कहा मैंने उसे उत्तर दिया कि इतना सब करने का समय नहीं है जल्दी से करके यहां से निकलते हैं उसने मेरी तरफ बड़ी आशा से देखा
मैंने उससे पूछा- क्या तुम तैयार हो?
वो कुछ पल के लिये सोच में पड़ गया फिर अचानक हां बोल सिर हिलाने लगा मेरी वैसे इच्छा हुई कि कुछ देर खेलूँ उसके साथ फिर सोचा कि आज इसे पहले तड़पाती हूं फिर बाद में कभी खेल लूंगी
मैंने उसको अपनी पैंट उतारने को कहा उसने हड़बड़ाते हुये अपनी पैंट खोली तो उसके जांघिए के भीतर ही उसका लंड तनतना रहा था मैं उसकी व्याकुलता समझ गयी और बोली- तुम पहले मेरी चूत को चाट कर गीला करो वो तो जैसे यही चाह ही रहा था
उसने झट से मेरी साड़ी उठा दी तो मैंने उसे डांटते हुये बोला रुको हड़बड़ी क्या है इस पर वो डर सा गया और रुक गया मैंने अपनी साड़ी कमर तक पूरी ऊपर की और अपनी पैंटी उतार उसे अपनी चूत के दर्शन करा दिए
उसकी आंखों में तो जैसे खून उतर आया था उसने बिना देरी किये मेरी जांघों के बीच अपना सिर घुसा अपनी अवस्था ले ली उसने मेरी चूत को एक बार नजर भरके देखा फिर अपना मुंह मेरी चूत से चिपका दिया
उसके मुंह से पहले उसकी मूंछें और दाढ़ी मेरी चूत से छू गयी जिसकी गुदगुदी से मेरे रोंये खड़े हो गये मेरी चूत को उसने जीभ से चाटना शुरू कर दिया कुछ पल के लिये तो मैं थोड़ी सामान्य ही रही
पर 2 मिनट के बाद मुझमें भी खुमारी चढ़ने लगी मेरी चूत की पंखुड़ियों में सनसनाहट पैदा होने लगी और ऐसा लगने लगा कि कुछ रेंगता हुआ गुदगुदाता हुआ मेरी चूत के भीतर जाने लगा
कुछ ही पलों में ऐसा लगा जैसे वो रेंगती हुई चीज मेरी नाभि से जा टकराई एक बिजली का झटका सा महसूस हुआ और यूं लगा जैसे नाभि से रस की तेज फुहार छूट कर चूत से बाहर निकलने को है
मैंने सुखबीर की पगड़ी पकड़ ली और उसे अपनी चूत में खींचने लगी मैं बहुत दिनों से प्यासी थी शायद इसी वजह से मुझे लगा कि मैं जल्दी ही उत्तेजित हो गयी मेरी चूत पल भर में गीली होकर लबालब हो गयी
कुछ देर उसने और चूत चाटी तो मैं खुद बोल पड़ी चूत के भीतर जीभ डाल कर चूसिये ना सुखबीर जी वो मेरी आज्ञा का पालन तुरंत करने लगा और थोड़ी देर चाटने के बाद मुझे लगने लगा कि अब मैं खुद को रोक नहीं सकती
मैंने सुखबीर से कहा- अब बस भी करो अब मेरी बारी है
सुखबीर यह सुन कर खुशी से झूम उठा शायद पहली बार उससे किसी औरत ने ये सब कहा होगा मैंने उसके खड़े होने को कहा उसका पैंट तो पहले से पैरों में गिरा हुआ था केवल जांघिया बचा था
उसने जैसे ही अपनी जांघिया नीचे सरकाया उसका लंड टन्न से झूले की तरह ऊपर नीचे होने लगा वो तो पहले से ही इतना उत्तेजित था कि कुछ करने की जरूरत नहीं थी
सरदार जी का लंड गोरा और बहुत कड़क दिख रहा था लंड बालों से घिरा हुआ था और अंडे फूल और सिकुड़ रहे थे मानो जैसे वीर्य का दरिया उसके अंडकोषों में उथल पुथल होते हुये बहने को हो रहा था
उसके अंडकोष किसी सांड की तरह लटक रहे थे और लंड कोई हलचल मचाने को फनफना रहा था उसके लंड का आकार मेरे अपेक्षा के अनुसार बढ़िया दिख रहा था मोटाई और लंबाई बिलकुल सही थी
मैंने उसके लंड को पकड़ हाथ से आगे पीछे हिलाया तो सुखबीर लंबी लंबी सांसें लेते हुये सिसकारने लगा जैसे ही मैंने उसके ऊपर की चमड़ी को खींच कर पीछे किया सुपारा खुल गया
उसकी सुर्ख गुलाबी सुपारे से अंदाज लग गया कि वो पहले से ही अत्यधिक उत्तेजित था उसके लंड को पकड़ और सुपारे को देख मैंने अंदाज लगा लिया कि उसकी अधिकतर जवानी हस्तमैथुन करते गुजरी थी
उसने संभोग कम किया था मैंने उसके सुपारे पे अपनी जुबान फिराई तो उसने सट से मेरे सिर को पकड़ बालों को कस के दबोच लिया थोड़ा थूक से गीला करके मैंने लंड मुंह में भर उसे जैसे ही चूसना शुरू किया
उसने तो ऐसे सिसकारी भरनी शुरू कर दी जैसे कोई औरत हो मैंने उसे अभी एक मिनट भी नहीं चूसा था कि उसने जबरदस्ती मेरे मुंह से लंड खींच कर बाहर निकालने का बोलने लगा बस करो नहीं तो मेरा रस निकल जाएगा
मुझे शंका हुई कि वो ज्यादा देर संभोग नहीं कर पाएगा फिर भी मैंने सोचा अब इतना हो चुका है तो आगे बढ़ कर ही देखा जाए
मैं लेट गयी और अपनी टांगें खोल कर घुटनों को मोड़ते हुये उससे बोली आ जाओ
उसने अपनी पैंट और जांघिया को पूरा निकाला और मेरे ऊपर आ गया वो मेरे ऊपर झुक गया और उसका लंड ठीक मेरी चूत के ऊपर था वो मुझे देखने लगा
तो मुझे ही कहना पड़ा- अब घुसाओ भी
वो एक हाथ से पकड़ कर अपना लंड मेरी चूत की छेद में घुसाने लगा उसका सुपारा घुसा तो मुझे लगा जैसे कोई गर्म गोला मेरी चूत में घुस गया बड़ा आनंद सा महसूस हुआ मुझे ऐसा लगा जैसे कोई गुदगुदी कर रहा हो उसने धीरे धीरे दबाव देना शुरू किया
मेरी चूत इतनी गीली थी कि उसका लंड सरकता हुआ कुछ पल में ही भीतर समा गया
मैंने उससे कहा- आराम से धीरे धीरे धक्के मारना
उसने मेरी आज्ञा का पालन करते हुये हां में सिर हिला हल्के हल्के धक्के मारने शुरू किए उसका लंड चिकनी मिट्टी सी मेरी चूत में आराम से फिसल कर अंदर बाहर होने लगा
मुझे बहुत आनंद आने लगा था और मैं मस्ती में आंखें मूंदे उसके धक्कों को स्वीकृति देती रही वो भी मेरे साथ आनंद के सागर में गोते लगाने लगा था हम दोनों की लम्बी लम्बी सांसें एक साथ कराहते सिसकते हुये कमर से कमर टकराने लगीं
उसके लंड में अजीब सा आकर्षण था जो मुझे और अधिक उत्तेजित कर रहा था मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी चूत की पूरी मांसपेशियां सिकुड़ कर उसके लंड को भींच रही थी
करीब 2 से 5 मिनट होने चले थे और सुखबीर के शरीर से पसीना बहने लगा था मैं अपनी मस्ती में उसे और उकसाने का काम करने लगी थी
मैं कभी उसके चूतड़ों को पकड़ कर अपनी तरफ खींचती तो कभी अपनी टांगें उसकी कमर पर लाद देती उसने धक्कों की अपनी रफ्तार तेज कर दी और अब वो मेरी गहराई तक वार करने लगा
उसने मेरी कामोत्तजना इस प्रकार और अधिक बढ़ा दी क्योंकि अब उसका लंड हर धक्के पर मेरी बच्चेदानी को चूम रही थी पर उसके इतने तेज़ और जोरदार धक्कों ने मेरे मन में भय ला दिया कि कहीं वो मुझसे पहले न झड़ जाए
अगर वो मुझसे पहले झड़ गया तो मैं प्यासी रह जाऊंगी और कुछ पलों में मेरा ये भय सत्य हो गया उसके लंड ने एक तेज़ धार छोड़ दी जो सीधा मेरी बच्चेदानी से जा टकराई
उस तेज़ वीर्य की चोट ने मुझे बता दिया कि सरदार जी अब झड़ गए मैं उसकी कमर को पकड़ कड़े शब्दों में बोल पड़ी अभी नहीं
पर अब बहुत देर हो चुकी थी मेरे पूरे जोर के आगे भी वो नहीं रुका बल्कि 5-10 धक्के पूरी ताकत से मार अपनी थैली खाली करके मेरे ऊपर गिर गया
उसने अपना सारा वीर्य मेरी चूत के भीतर छोड़ दिया था वो खलास हो गया था मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर मैं कर भी क्या सकती थी मैंने उसके सामान्य होने की प्रतीक्षा की जैसे ही वो सामान्य हुआ वो तुरंत उठ कर बैठ गया
मेरी चूत से लंड के खींचते ही उसका वीर्य बह निकला था उसने तुरंत तौलिया लिया और मेरी चूत साफ कर दी फिर तौलिये का दूसरा किनारा लेकर अपने लंड को पौंछने लगा उसके चेहरे पर संतुष्टि के चिह्न दिख रहे थे पर मुझे गुस्सा आने लगा था
गुस्से में आकर मैंने उसे आखिरकार बोल ही दिया- बस इतना ही दम था फोन पर तो बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे? उसका चेहरा मेरी बात सुनकर उतर गया और वो चुपचाप जमीन की तरफ देखने लगा
बाकी कहानी hindi sex story के अगले भाग में
Antarvasna Sex stories :- काम वासना की आग- 12